आज हम सभी भारतीय होने पर गर्व करते हैं। स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस पर जब हमारे देश में धूम धाम से उत्सव मनाये जाते हैं तब हम सभी उत्साहित होकर कहते हैं कि '' हमे गर्व है की हम भारत के निवासी हैं।''क्या हमने कभी इस बात पर गौर किया है कि हम जिस भारत देश में रहते हैं वहाँ की मात्र भाषा हिंदी है और संस्कृत के कितने ही ग्रन्थ और उपनिषद इसी भारत देश में रहने वाले विद्वानों ने लिखे हैं। और उन्ही उपन्यास और ग्रंथो से लिए गए श्लोकों और मन्त्रो का उच्चारण करके हम बड़े बड़े पर्वों में पूजा, पाठ करते हैं , और जब कभी भी ''रामायण'' और ''गीता'' और ''शिवपुराण'' जैसे ग्रंथों को पढ़ते हैं तब हमारे मन में इनको लिखने वाले विद्वानो के प्रति आदर और सम्मान की भावना आती है।
लेकिन क्या हमने कभी इस विषय पर विचार किया है कि आज हमारे देश में हिंदी और संस्कृत को बोलने वाले व्यक्तियों का उतना सम्मान नहीं होता जितना की इंग्लिश बोलने वाले व्यक्तियों का होता है। आज हमारे भारत देश में कितने युवा ऐसे हैं जो की सिर्फ इंग्लिश ना बोल पाने के कारण और इंग्लिश में कमजोर होने के कारण बेरोजगार हैं।
ऐसा नहीं है की उनमे कुछ कर दिखने की कविलियत नहीं है। उनकी कमजोरी सिर्फ ये है की वो इंग्लिश को अच्छी तरह से बोल और समझ नहीं पाते।
जब भी एक युवा किसी बड़ी कंपनी में इंटरव्यू देने जाता है तो उस से इंग्लिश में ही बात की जाती है और यदि वो इंग्लिश में अच्छे से जबाब नहीं दे पता तो उसे कमजोर समझकर निकाल दिया जाता है। क्या इंटरव्यू लेने वाले व्यक्ति कभी ये जानने की कोशिश करते हैं की सामने बैठा हुआ युवा बुद्धिमान है या नहीं और ऐसा भी तो हो सकता है की वो दिए गए काम को उन व्यक्तियों की अपेछा ज्यादा अच्छी तरह से कर पाये जिनको इंग्लिश आती है।
इंग्लिश जानने वाला व्यक्ति बुद्दिमान ना होते हुए भी जॉब का हकदार होता है और हिंदी बोलने वाला व्यक्ति बुद्धिमान होते हुए भी जॉब से निकाल दिया जाता है। जब हम भारत में रहने वाले लोगों की मुख्य भाषा हिंदी है तो हमेशा भारत में रहने वाले वो लोग ही क्यों पिछड़ जाते जिनकी हिंदी में मज़बूत पकड़ है ? जबकि भारतीय होने के नाते पिछड़ना उन्को चाहिए जिनको हिंदी नहीं आती।
भारत एक ऐसा देश है जहाँ सभी भाषाओं का सम्मान किया जाता है। यहाँ दुनिया के हर कोने से लोग आते हैं और हिंदी सीखते हैं फिर हमारे ही देश में हिंदी भाषी लोग पिछड़ क्यों रहे हैं ?
विदेशी कंपनियाँ और बाहरी लोग हमारे देश में स्थापित होते जा रहे हैं और हमारे देश में ही रहने वाले लोगो को रोज़गार के लिए भटकना पड़ रहा है
एक बहुत ही महत्वपूर्ण और आश्चर्य की बात ये है कि भारत में रहने वाले वो लोग जो अंग्रेजी में कमजोर हैं उनको भारत के बाहर अच्छी नौकरियाँ मिल जाती हैं इसका सबसे बड़ा कारन यह है की विदेशी कम्पनियाँ भाषा को परे रख कर व्यक्ति की छमताओ का उपयोग करती है। और ऐसे ही उनकी कंपनी शिखर पर पहुचती जाती हैं आज हमे जरुरत है की हम व्यक्ति की छमताओ को परख कर उसके आधार पर नौकरी दे, भाषा के आधार पर नहीं।
जब भी कोई युवा इंटरव्यू देने जाता है और यदि वो अंग्रेजी में कमज़ोर है तो वो बुद्धिमान होते हुए भी थोड़ा डरा हुआ रहता है क्योकि वो अंग्रेजी में अच्छी तरह से जबाब नहीं दे सकता। यदि इंटरव्यू लेने वाला व्यक्ति इंटरव्यू देने आये युवा से पूछ ले की वो किस भाषा में जबाब देने में सहज महसूस करेगा और यदि वो हिंदी में जबाब देने में सहज महसूस करता है तो उसकी बात का सम्मान करते हुए उस से हिंदी में ही इंटरव्यू लिया जाये और उसकी छमताओ का परिक्षण किये बिना उसको औरों से कमजोर न समझा जाये।
और यदि वो नौकरी करने में सछम है तो उसे भी उतनी ही अच्छी जॉब करने का मौका मिले जितनी एक अंग्रेजी जानने वाले व्यक्ति को मिल सकता है, जिस से उसके स्वभिमान को ठेस न पहुंचे।
भारत में रहने वाले हर एक व्यक्ति के सपने भारत में साकार हों जिससे उसे नौकरी की तलाश में इधर उधर ना भटकना पड़े। और उसे ये कहने में गर्व हो की वो भारतीय है। हमे खुद हमारी भाषा का सम्मान करना होगा तभी दूसरे लोग भी हमारा सम्मान करेंगे।
जय हिन्द। ..
दीपशिखा
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