Sannate Bhi Bol Uthenge (सन्नाटे भी बोल उठेंगे) | Author: Ravi Pratap Singh

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रवि प्रताप सिंह जी की ग़ज़लें पढ़ने का अवसर मिला। पिछले 4-5 दशकों में ग़ज़ल ने अपना मिज़ाज बदला है। ग़ज़ल अब व्यक्तिवादी निजी प्रेम, मिलन, विछोह जैसी भावनाओं के साथ-साथ समाज में व्याप्त असमानता से उपजी बेचैनी / असंतोष और संघर्ष को भी मुखरता से व्यक्त कर रही है।

शायर ने कितने गहन अवसाद के पलों को जिया होगा, जो उसकी क़लम से ये शब्द निकले -

अब लबों को हँसी रास आती नहीं,

इक ज़माना हुआ मुस्कुराये हुए।

सामाजिक पीड़ा को भी शायर ने क़रीब से महसूस किया है तभी उसके लफ़्ज़ एक आर्तनाद के रूप में सामने आए -

ख़्वाहिशें झुलसी हुई हैं हर तमन्ना ख़ाक है,

ख़्वाब में भी रोटियों का गोल घेरा हर तरफ़।

सामाजिक सरोकार और मानवीय संवेदनाओं को प्रभावी ढंग से शे'र में ढाल देने का हुनर, पाठकों / श्रोताओं को भीतर तक उद्वेलित करके सोचने पर मजबूर कर देता है -

ज़ुल्म की आँधी के आगे हर ज़ुबाँ ख़ामोश थी,

बन गए सबकी ज़ुबाँ कुछ बे-ज़ुबाँ ऐसे भी थे।

ग़ज़ल विधा के प्रति रवि प्रताप सिंह जी की साधना और गम्भीरता स्पष्ट दिख रही है, जो मुझ जैसे ग़ज़ल-प्रेमियों के लिए शुभ संकेत है। अल्लाह करे ज़ोरे-क़लम और ज़ियादा। मुझे आशा और विश्वास है कि ग़ज़ल के क्षेत्र में ये ग़ज़लें चर्चित एवम प्रशंसित होंगी।

'सन्नाटे भी बोल उठेंगे' के प्रकाशन पर हार्दिक बधाई एवम शुभकामनाएं।

दीक्षित दनकौरी


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Details of Book: Sannate Bhi Bol Uthenge (सन्नाटे भी बोल उठेंगे)

Book:Sannate Bhi Bol Uthenge (सन्नाटे भी बोल उठेंगे)
Author:Ravi Pratap Singh
Category:गजल संग्रह
ISBN-13:9789391041953
Binding & Size:Paperback (5.5" x 8.5")
Publishing Date:2022
Number of Pages:156
Language:Hindi
Reader Rating:   5 Star
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